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Saturday, March 16, 1996

मेरा बचपन

मेरा बचपन कितना सलोना
कितना कोमल, कितना भोला |
डूब जाये थे दिन खुशियों में सरे
आज भी नहीं वो बाहर आते |
प्यार ही प्यार जिसमें भरा था
दुःख-चिन्ता का नाम नहीं था |
रात-दिन का पता नहीं था
खेलो-कूदो दिन अपना था |
वही अपने खेल-खिलौने
भूल गए हम कितने सारे |
एक झोंके  ने पलट दिया सब
बिछड़ गए सखियों से हम अभागे |
आज भी मन करता है जाऊँ
और दिन व्यर्थ न बिताऊँ |
जाकर सखियों संग खेल आऊँ
मिलकर सबके हाल पुच आऊँ |
बचपन के साथ गए दिन वो
जब करते थे हम बदमाशी
ना थी हमको समझ इतनी तब |
मम्मी-पापा हँसते थे हम पर
जब करते थे हम बदमाशी |
ऐसी मौज कहाँ अब हमारी
अब तो बस, पढो
यही है लाइन हमारी |
फिर भी नहीं हम आज उदास
आज भी हैं हम थोड़े शैतान |
फिर भी इतनी मस्त ज़िदगी कहाँ अब
यही सोच गुस्सा आजाये |
ये भी ज़िदगी का ही मोड़ है
पता नहीं कितना सुख-चैन है |
आज भी मन लालच से भरा जाए
काश मेरा बचपन लौट आये |