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Tuesday, June 8, 2004

अपना भी एक मजनू हो

बैठे-बैठे कल्पना की 
कि अपना भी एक मजनू हो

दिल हथेली पे लिए चले जो 
मेरे पीछे-पीछे फिरे वो 
साडी के आँचल से बांध ले जो
बाकि सब को बहन  कहे वो
ऐसा अपना एक मजनू हो |

जिंदिगी में हरयाली ले आये जो
दिल के तार हिला जाए वो
आज़ाद पंछी सी आज़ादी दे जो
मेरे दोस्तों से दोस्ती करे जो
मेरी ख़ामोशी भी जान ले वो
ऐसा अपना एक मजनू हो |

कल कि परवाह न करे जो
आज कि ही बात करे वो
टाइम का पक्का, प्यार हो अपना
यही है मेरा प्यारा सपना
मेरा भी एक मजनू हो |

प्रेम कहानी

एक लड़की थी नयारी
कर बैठी काकरोच  से यारी |
माँ ने उसे समझाया बहुत
" काकरोच का पीछा छोड़,
चिड़ियों को बना अपना दोस्त! "
पर उसे कहाँ ये रास आया
उसको तो था प्यारा याराना |
फूल खिले, बहार आयी
बचपन कि मस्ती उसपे छायी |
सुद-भु  खो, सब काम छोड़
काकरोच के पीछे वो भागी |
बोली, " मेरे प्यारे काकरोच
चलो भाग जायें कहीं हम दोनों |
जहाँ ना हो ये ज़ालिम ज़माना
न यूँ रोज़-रोज़  का कतराना |
हवाईजहाज से हम जायें रोम
वहाँ बनाये हम अपना होम... "
और यूँ ही वो सपने बुन्ने लगी
अचानक एक गलती हो गयी |
पैर उसका परा चटक,
काकरोच गया वहीँ पिचक |
वो सक्की-बक्की रह गयी
और खामोशी से घर को चली |