एक लड़की थी नयारी
कर बैठी काकरोच से यारी |
माँ ने उसे समझाया बहुत
" काकरोच का पीछा छोड़,
चिड़ियों को बना अपना दोस्त! "
पर उसे कहाँ ये रास आया
उसको तो था प्यारा याराना |
फूल खिले, बहार आयी
बचपन कि मस्ती उसपे छायी |
सुद-भुद खो, सब काम छोड़
काकरोच के पीछे वो भागी |
बोली, " मेरे प्यारे काकरोच
चलो भाग जायें कहीं हम दोनों |
जहाँ ना हो ये ज़ालिम ज़माना
न यूँ रोज़-रोज़ का कतराना |
हवाईजहाज से हम जायें रोम
वहाँ बनाये हम अपना होम... "
और यूँ ही वो सपने बुन्ने लगी
अचानक एक गलती हो गयी |
पैर उसका परा चटक,
काकरोच गया वहीँ पिचक |
वो सक्की-बक्की रह गयी
और खामोशी से घर को चली |
कर बैठी काकरोच से यारी |
माँ ने उसे समझाया बहुत
" काकरोच का पीछा छोड़,
चिड़ियों को बना अपना दोस्त! "
पर उसे कहाँ ये रास आया
उसको तो था प्यारा याराना |
फूल खिले, बहार आयी
बचपन कि मस्ती उसपे छायी |
सुद-भुद खो, सब काम छोड़
काकरोच के पीछे वो भागी |
बोली, " मेरे प्यारे काकरोच
चलो भाग जायें कहीं हम दोनों |
जहाँ ना हो ये ज़ालिम ज़माना
न यूँ रोज़-रोज़ का कतराना |
हवाईजहाज से हम जायें रोम
वहाँ बनाये हम अपना होम... "
और यूँ ही वो सपने बुन्ने लगी
अचानक एक गलती हो गयी |
पैर उसका परा चटक,
काकरोच गया वहीँ पिचक |
वो सक्की-बक्की रह गयी
और खामोशी से घर को चली |
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