जो अल्फाज़ समेटे रखे थे महफूज़
वो छल से, गिर गए हैं आज |
ये न उभरते तो कुछ नया नहीं था
जो निकल पड़े हैं, अब कुछ वही नहीं रहा |
मुझे हो न हो, है इनहें पहचान
ढूंड लिया है इनहोंने एक नया मकान |
और इस दिल के खाली कमरे में
छोड़ चले ये सैकड़ों अरमान |
01/09/12
Bahut badhiya!!
ReplyDelete:) thankyou! Aap ki tareef?
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