क्या है यह शब्द?
सिर्फ हमारे मन का डर?
जो न तो कभी दिखाई देता है और
न ही कभी सुनाई |
फिर क्यों, क्यों लोग इसका नाम लेते हैं,
इसकी मूर्ती बनाते हैं,
इसकी पूजा करते हैं,
कोई जान पाया है क्या अभी तक?
क्यों लोग भगवन को तो प्रसाद चढ़ाते हैं, और
गरीबों को दो वक़्त की रोटी नहीं?
क्यों लोग मंदिर बनाते हैं और
गरीबों का घर नहीं?
क्या हमने शास्त्रों मैं नहीं पढ़ा कि
गरीबों की मदद करना भगवान की मदद करना है?
फिर क्या अजीवित के लिए घर बनाकर
जीवित को मरता छोड़ सही है?
क्यों लोग दुःख में इनका नाम लेते हैं
और सुख में भूल जाते हैं?
यह कैसा अनोखा बहाना है
जो मन को शक्ति और शान्ति देता है?
और जो है नहीं उसके लिए क्यों हो जाते हैं लोग
मर-मिटने को तैयार?
क्यों लड़ते हैं लोग अपने धर्म को लेकर,
क्या उनके ईशवर ने कहा था यह?
और क्या सरे धर्मों की एक ही शिक्षा नहीं है?
"हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई | "
कितना अच्छा लगता है सुनकर |
किन्तु इस वाक्य का पालन
किया है क्या किसीने?
मरने के बाद-
एक तरफ लोग 'स्वर्ग और नर्क' की बात करते हैं,
जो न जाने कहाँ है, और
दूसरी तरफ पुनःजन्म की
और कभी तोह भूत बनने की |
विशवास किया भी जाये तो किसका?
इस ईशवर की भी अजीब ही दास्तान है |
सिर्फ हमारे मन का डर?
जो न तो कभी दिखाई देता है और
न ही कभी सुनाई |
फिर क्यों, क्यों लोग इसका नाम लेते हैं,
इसकी मूर्ती बनाते हैं,
इसकी पूजा करते हैं,
कोई जान पाया है क्या अभी तक?
क्यों लोग भगवन को तो प्रसाद चढ़ाते हैं, और
गरीबों को दो वक़्त की रोटी नहीं?
क्यों लोग मंदिर बनाते हैं और
गरीबों का घर नहीं?
क्या हमने शास्त्रों मैं नहीं पढ़ा कि
गरीबों की मदद करना भगवान की मदद करना है?
फिर क्या अजीवित के लिए घर बनाकर
जीवित को मरता छोड़ सही है?
क्यों लोग दुःख में इनका नाम लेते हैं
और सुख में भूल जाते हैं?
यह कैसा अनोखा बहाना है
जो मन को शक्ति और शान्ति देता है?
और जो है नहीं उसके लिए क्यों हो जाते हैं लोग
मर-मिटने को तैयार?
क्यों लड़ते हैं लोग अपने धर्म को लेकर,
क्या उनके ईशवर ने कहा था यह?
और क्या सरे धर्मों की एक ही शिक्षा नहीं है?
"हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई | "
कितना अच्छा लगता है सुनकर |
किन्तु इस वाक्य का पालन
किया है क्या किसीने?
मरने के बाद-
एक तरफ लोग 'स्वर्ग और नर्क' की बात करते हैं,
जो न जाने कहाँ है, और
दूसरी तरफ पुनःजन्म की
और कभी तोह भूत बनने की |
विशवास किया भी जाये तो किसका?
इस ईशवर की भी अजीब ही दास्तान है |
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