ये मौसम की पहली अंगराई तो नहीं,
ना तरसते होटों की पहली बार प्यास बुझी
आज पहली बार तो नहीं |
छम से तो नहीं आई यें
धम से अरमानो की बाड़ ले आई हैं |
शर्म से, ना इतराई, ना डगमगाई हैं ये
बेखौफ, बेपरवाह, खुल के नाची हैं |
आज क्या नई बात है,
आज पहली बार तो नहीं |
मेरे दिल पे दस्तक देतीं
शोर मचातीं, कुछ कहती हैं ये बूंदें,
सोये कुछ ख्वाबों को चुटकी काटती हैं
दबी-दबी ख्वाहिशों को ठठोल के जगाती हैं |
नए सपने, नई चाहतें बोती हैं
मेरे होने का यकीन दिलाती हैं ये बूंदें |
उल्लास, उमंग, उम्मीद से भरी,
मुझमें ये बिजली सी दौडी हैं |
आज यही नई बात है,
पर पहली बार तो नहीं |
25/08/2012
25/08/2012
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