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Saturday, August 25, 2012

सोयी पड़ी थी देर तक

 सोयी पड़ी थी देर तक 
अब जाग के आगे बढ़ना है 
मस्त सपनों में खोयी रही 
अब हकीकत में उतरना है 

ऊँचाइयों को छूना है 
इन पर्वतों के पार जाना है 
इतिहास के पननों पर
अपना भी नाम कमाना है 

सोयी पड़ी थी देर तक
अब जाग के आगे बढ़ना है 
इन पर्वतों के पार 
उन हसीन वादियों में उतरना है 

जाना है बहुत दूर 
ये रास्ता नहीं आसान 
निडर, एक के आगे एक 
अब कदम मुझे बढ़ना है 

उन हसीन वादियों में उतरना है 
इन पर्वतों के पार जाना है
इतिहास के पननों पर
अपना भी नाम कमाना है 

26/08/2012

ये ख्वाब

गुम हो चुकी हूँ जो 
कि ख्वाब में पड़ी हूँ मैं
मुझे इस नींद से ना जगाओ 
कि अब संभलना मुश्किल है |

ये गहरी है तनहाई
इसका एक ही हमसफ़र है 
ये ख्वाब मुझ से हैं 
या मैं इन ख्वाबों से हूँ |

जाओ भी, ना सताओ 
बेरहमी से मुझे ना जगाओ 
इन ख्वाबों पे रौशनी डालो ना 
ये जलते चिराग बुझने लगें |

मुझे यूँ ही खो जाने दो 
इस आग में जल जाने दो 
कि इनका वजूद मुझसे है 
या मेरा वजूद इन से | 

26/08/2012

आज क्या नई बात है

(Aaj Kya Nayi Baat Hai - audio link)


आज क्या नई बात है 
ये मौसम की पहली अंगराई तो नहीं, 
ना तरसते होटों की पहली बार प्यास बुझी 
आज पहली बार तो नहीं |

छम से तो नहीं आई यें
धम से अरमानो की बाड़ ले आई हैं |
शर्म से, ना इतराई, ना डगमगाई हैं ये 
बेखौफ, बेपरवाह, खुल के नाची हैं |

आज क्या नई बात है,
आज पहली बार तो नहीं |

मेरे दिल पे दस्तक देतीं
शोर मचातीं, कुछ कहती हैं ये बूंदें, 
सोये कुछ ख्वाबों को चुटकी काटती हैं 
दबी-दबी ख्वाहिशों को ठठोल के जगाती हैं |

नए सपने, नई चाहतें बोती हैं
मेरे होने का यकीन दिलाती हैं ये बूंदें |
उल्लास, उमंग, उम्मीद से भरी,
मुझमें ये बिजली सी दौडी हैं |

आज यही नई बात है, 
पर पहली बार तो नहीं |

25/08/2012